2023 गणेश चतुर्थी : विघ्नहर्ता की स्थापना

इस साल गणेश चतुर्थी 19 सितम्बर 2023 को है।   

भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक गणेश चतुर्थी का उत्सव बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। गणेश जी,माँ शक्ति और भोले नाथ के पुत्र है  जिन्हे कोई भी कार्य आरंभ करने से पहले पूजा जाता है। कोई भी कार्य  बिना गणेश पूजन के हो ही नहीं सकता।ऐसा  माना जाता है गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का जनम हुआ था।  उनके जनम को लेकर कई कथाएँ प्रचलित है जिसमे से सबसे प्रचलित कथा कुछ इस प्रकार है।  माता पार्वती ने अपने मैल से एक पुतला बनाया और उसे द्वार पर खड़ा कर दिया ताकि कोई भी अंदर न आ सके। शिव जी इस बात से अपरिचित थे  जब उन्होंने भवन के अंदर आने की कोशिश की तो गणेश जी ने उन्हें अंदर आने से रोका जिससे भगवान शिव और गणेश में बहुत भयानक युद्ध हुआ जिसमे शिव जी ने गणेश जी का सर धढ़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती ने गणेश जी बिना सर के देखा तो उनका  क्रोध फुट पड़ा उनके क्रोध की अगनि इतनी तेज थी की सम्पूर्ण सृष्टि का सर्वनाश हो जाए ।  यह सभ देख महादेव ने उनका क्रोध शांत किया और गणेश जी को हाथी का सर लगा कर पुनः जीवन दान दिया।

2023 गणेश चतुर्थी : विघ्नहर्ता की स्थापना

2023 गणेश चतुर्थी : विघ्नहर्ता की स्थापना
2023 गणेश चतुर्थी : विघ्नहर्ता की स्थापना

 

यदि आप भी गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी को अपने घर  स्थापित करना चाहते है परन्तु घर  के समीप कोई नदी ना होने से आप ये कर नहीं पा रहे तो इसका बहुत ही  सरल उपाय है जो करोना काल में लगभग सबने अपनाया था। हम अपने घर के  किसी भी बर्तन में  गणेश जी को विसर्जित कर सकते है।  आप छोटे से इकोफ्रैंडली गणेश जी अपने घर लाइए ,सुबह और संध्या के समय उनकी  रोज पूजा किजिए  लड्डू ,मोदक और फल का भोग अपने सामर्थ्य अनुसार लगाइए ,आरती किजिए।  10 वें  दिन अपने घर के किसी साफ बर्तन अथवा बाल्टी  में पानी डालिए और गणेश जी की  मूर्ति को उसमे प्रेमपूर्वक डाले। मूर्ति डालते समय ये प्राथना करे की अगले वर्ष भी हमारे घर जरूर आना और उनसे क्षमा प्राथना अवश्य करे की इन 10  दिनों में अगर हमसे जाने अनजाने में कोई भूल हुई  है तो हमें अपना बालक समझ  के माफ़ कर दे। जब गणेश जी की प्रतिमा उसमे पूरी तरह घुल जाए तो उस पानी को या तो किसी पेड़ की जड़ में या अपने घर के गमलो में दाल दे।  गणेश जी को भूल से भी तुलसी माता का पता न चढ़ाए। 

गणेश चतुर्थी बहुत पुराने समय से मनाइ जा रही है ऐसे कुछ प्रामण पुराने वंश काल से मिले है।  मराठा शासक शिवाजी ने गणेश चतुर्थी को राष्ट्रधर्म और संस्कृति से जोड़कर एक नइ  शुरुवात की थी। मराठा शासको ने गणेश चतुर्थी की  परंपरा को  बनाए रखा और पेशवाओ ने भी इस परम्परा को जारी रखा इसका एक कारण ये भी था की गणेश जी पेशवाओ के कुलदेवता थे। इस समय गणेश जी को राष्ट्रदेव भी कहा जाने  लगा। 

गणेश जी को प्रसन करने के उपाय

  • गणेश जी को दूर्वा अति प्रिए है क्युकि इसमें अमृत का वास होता है।  गणेश जी को प्रसन करने के लिए उन्हें 21 दूर्व ,2 शमी के पत्ते और 2 बेल पत्र चढ़ाए जाते है।  कहा जाता है जो व्यक्ति गणेश जी को दूर्वा चढ़ाता है वह कुबेर के समान हो जाता है। 
  • गणेश जी को लडू बहुत पसंद है यदि आपकी कोई खवाइश है जो काफी समय से अधूरी है तो आप गणेश जी को मूंग की दाल के लाडू चढ़ाकर पूरी कर सकते है।  यह उन्हें प्रसन करने का अति सरल उपाय है। 
  • यदि आप प्रतिदिन गणेश जी को फल चढ़ाते है तो भी इससे भी वह प्रसन होते है।

गणेश जी को तुलसी माता का पत्ता न चढ़ाए

गणेश चतुर्थी और इतिहास

बात 1892 ब्रिटिश काल की है जब गणेश उत्सव केवल हिन्दू परिवारों के घर में ही सिमिट कर रह गया था । 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश शासन ने धरा 144 लागु कर राखी थी।  धरा 144  के अंतर्गत 5 से अधिक लोग सामूहिक रूप से मिलकर कोई प्रदर्शन नहीं कर सकते थे । अन्यथा पड़के जाने पर  उन्हें कड़ी सजा दी जाती थी जो की नर्क भोगने के बराबर थी।  

1894  में बाल गंगाधर तिलक जी ने पुणे के शनिवारवाडा से इसे पुनः आरम्भ किया।  इस उत्सव में हजारो लोगो की भीड़ इक्क्ठा हुई। बाल गंगाधर तिलक जी ने अंग्रेज पुलिस को ये चुनौती दी थी की इस समारोह में वो उन्हें या किसी और को गिरफ्तार नहीं कर पाएगे क्युकि अंग्रेज पुलिस ने राजनैतिक समारोह पर पाबंदी लगा रखी थी और यह एक धार्मिक समारोह था। इसका परिणाम यह हुआ की तिलक जी शनिवारवाड़ा में हर दिन भाषण के लिए किसी बड़े व्यक्ति को आमंत्रित करते थे। इस भाषण का मूल मंत्र यही होता था की अंग्रेजो को कैसे भारत से भगाया जाए।

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