परदोष व्रत से कर सकते है भाग्य को उदय – चंद्र ,शुक्र और बुध सभ देंगे शुभ फल

परदोष व्रत से कर सकते  है भाग्य  को उदय – परदोष व्रत करने से चंद्र ठीक होता है चंद्र ठीक होने से शुक्र ठीक होता है और शुक्र ठीक होने से बुध ठीक होता है।  यह व्रत आपके सभी ग्रहो को ठीक कर देता है अर्थात सुभ फल देने वाला होता है। 

शास्त्रों में भगवन शिव की पूजा का विषेश महत्व बताया गया है ।  जिससे मनुष्य अपने जीवन की  सभी समस्याओ से छुटकारा पा सकता  है।  उनकी पूजा से हम अपने सभी गृह तो ठीक कर सकते है और अपने जीवन में सुख ,शांति और समृद्धि ला सकते है।

परदोष व्रत से कर सकते है भाग्य को उदय – चंद्र ,शुक्र और बुध सभ देंगे शुभ फल 

शिव का अर्थ है कल्याणकारी। भगवान शिव को भोले नाथ भी कहा जाता है। भगवान  शिव को भोले नाथ कहने के पीछे भी एक कथा है।  भस्मासुर नाम का एक राक्षस था उसने भगवान  शिव को प्रसन करने के लिए कठोर तप किया।  भगवन शिव सभ जानते थे की वह एक असुर है और उसके सभी कार्य जनकल्याण के विपरीत है। परन्तु शिव जी ने उसे वर दे दिया जिसके अनुसार वह जिसके सर पे हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। वर पाकर वह सोचने लगा क्यों न अपना हाथ शिव जी के के सर पर ही रखा जाए।  ऐसा करने पर शिव जी उस से  बच के भागने लगे तब भगवन विष्णु ने मोहनी रूप धारण किया और भस्मासुर के समक्ष पहुंच गए।  विष्णु जी के मोहिनी अवतार से वह मोहित हो गया और उनसे विवाह का आग्रह किया।  मोहिनी ने कहा  वह केवल उससे ही  विवाह करेगी  जो नत्य में उनकी तरह निपुण हो।  इस पर असुर ने कहा की उसे नत्य करना नहीं आता  पर अगर मोहिनी उसे सिखाए तो वह सीख जाएगा फिर क्या था  भगवान विष्णु जी जो की मोहिनी अवतार में थे नत्य करते हुए उसी का हाथ उसके सर पर रखवा दिया जिससे वह स्वयं ही भस्म हो गया।  इसलिए भगवन शिव को भोलेनाथ कहते है।  

परदोष व्रत की विशेष जानकारी 

परदोष व्रत से कर सकते है भाग्य को उदय

पौराणिक  कथा के अनुसार चंद्र को क्षय रोग था जिसके कारण उन्हें मृत्युतुल्य पीड़ा हो रही थी। भगवन शिव ने त्रयोदशी के दिन उस दोष का निवारण किया और उन्हें पुनः जीवन  दान दिया इसलिए इस व्रत को परदोष कहा  जाने लगा।

परदोष व्रत में  माता पार्वती और भगवन शिव दोनों की पूजा की जाती है। यह व्रत सभी मनोकामनाओ को पूरा करने वाला और भगवन शिव की कृपा प्राप्त करवाने वाला है। परदोष व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को आता है।

परदोष व्रत आरंभ करने से पहले मन में विचार कर लेना चाहिए  की व्रत 11 ,21 ,31 या फिर जब तक मनोकामना पूरी न हो जाए तब तक रखने है। 

शिव मंदिर में जाकर भगवन शिव और माता पार्वती के सामने बैठकर उनसे अपने व्रत शुरू करने की अनुमति लेते हुए उनके सामने 11 ,21  अथवा खुले व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए।  

परदोष व्रत की पूजा और उद्यापन दोनों ही संध्या के समय होते है। 

सूर्यास्त के 45 मिनट पूर्व से लेकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक के समय को प्रदोष काल कहा जाता है और यह परदोष पूजा का सर्वोतम्म समय होता है।  आप श्याम के 4 बजे से रात के 7 बजे तक परदोष व्रत की  पूजा कर सकते है। 

इस दिन संध्या के समय समस्त शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए।  सबको जल चढ़ाए ,दिया जलाए ,पुष्प चढ़ाए ,भोग लगाए (चावल अथवा मखाने की खीर)  कथा करे और फिर आरती करे इसके साथ माता पार्वती जी को श्रृंगार का पूरा सामान व लाल चुनरी भी चढ़ाए। 

इस दिन सामर्थ्य अनुसार पंडित जी को भोजन जरूर कराए यदि किसी कारण आप भोजन नहीं बना सकते तो पंडित जी को सूखा सामान दे जैसे आता चावल दूध आदि।   

महिलाए पीरियड्स में भी ये व्रत रख सकती है पर उस दिन पूजा न करे।  

उद्यापन  विधि 

परदोष के उद्यापन में आप सामर्थ्य अनुसार खीर का भंडारा कर सकते है अगर भंडारा सम्भब न हो तो काम से काम पांच लोगो को खीर  अवश्य खिलाए।  पंडित जी को केले के पत्ते  पर रखकर वस्त्र और पैसे दान करे। माता पार्वती का पूरा शृंगार भी  दे। दो सुहागिन स्त्रीओ को घर पे बुला के भोजन कराए और शृंगार का सामन दे।  

इस बात का ध्यान रखे की भगवन शिव ही एक ऐसे भगवन है जो केवल एक लोटे जल से खुश हो जाते है और शिव जी पे चड़े हुए  बिल्वपत्र को यदि  आप पुनः साफ जल से धो कर चढ़ा दे तो भी वो प्रसन हो जाते है।  इसलिए अगर आपकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है तो भी ये व्रत रखने में संकोच न करे। भगवान भाव देखते है।  

भगवन शिव को क्यों कहते है नीलकंठ

एक लोटा जल :  समुन्द्र मंथन के समय ऐसा विष निकला था जो पूरी सृष्टि को नष्ट सकता था।  उस समय सब देवो ने मिलकर भगवन शिव के आगे सृष्टि को बचने की प्राथना की। भगवान शिव ने उस विष को स्वम् ग्रहण कर लिया अर्थात उसे कंठ में एक जगह रख लिया जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया इससे उन्हें  नीलकंठ भी कहा जाने लगा। विष की गर्मी को कम  करने कई लिए देवो ने उन्हें जल अर्पित किया।  इसलिए उनकी पूजा में जल का बिशेष महत्व है. 

अलग अलग दिन पड़ने वाले परदोष व्रत का महत्व

अलग अलग दिन पड़ने वाले परदोष व्रत का महत्व भी अलग है।  जैसे सोमवार को पड़ने वाला सोम परदोष व्रत मनोवांछित फल को देने वाला होता है।  आइए इसी प्रकार जानते है अन्य दिनों में पड़ने वाले सपरदोष व्रत का महत्व. 

सोमवार परदोष व्रत 

सोमवार को आने वाले परदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है क्योकि सोमवार को भगवान शिव की पूजा का विशेष दिन मन जाता है।  जिन लोगो का चन्द्रमा कमजोर होता है उन्हें तो सोम परदोष व्रत जरूर रखना चाहिए। इससे आपका चन्द्रमा तो ठीक होता ही है साथ में आपको मनोवांछित फल के प्राप्ति भी होती है।  

मंगल परदोष व्रत 

मंगलवार के दिन परदोष व्रत आए तो उसे मंगल परदोष व्रत कहते है।  यह व्रत आपको कर्ज से मुक्ति तो देता ही है साथ हे आपकी स्वास्त  सम्बन्धी समस्याएँ भी दूर करता है।   

बुधवार परदोष व्रत 

बुधवार को आने वाले परदोष व्रत को सोम्यवारा परदोष व्रत भी कहते है यह व्रत मनोवांछित फल तो देता ही  है साथ में यदि आप अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हो तो वो भी करता है। 

गुरुवार परदोष व्रत 

यह व्रत हर तरह की सफलता को देने वाला है।  इस व्रत को करने से पितरो के आश्रीवाद के साथ साथ गुरु ग्रह का भी शुभ फल मिलता है।  यह व्रत शत्रुओ पर विजय भी प्राप्त करवाता है। 

शुक्रवार परदोष व्रत 

यह व्रत सौभाग्य में वृद्धि करने वाला व्रत है।  जिस मानव के जीवन में सौभाग्य होता है उससे सुख ,शांति सम्रद्धि स्वयं ही मिल जाती है।  

शनिवार परदोष व्रत 

यदि आप अपने मन चाही नोकरी में प्रमोशन पाना चाहते है तो आपको शनि परदोष व्रत जरूर रखना चाहिए। यह व्रत आपको पुत्र प्राप्ति का सोभ्यागया को देता ही है साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति भी करवाता है।  

रविवार परदोष व्रत

इसे रवि परदोष व्रत भी कहते है ।इस व्रत में भगवन शिव के साथ सूर्य के पूजा भी की जाती है ।यह व्रत सभी मनोकामना को पूरा करता  है ।

भगवन शिव को क्या समर्पित करे जिससे मनोवांशित फल की प्राप्ति हो ।

दूध  : वंश में व्रद्धि होती है। 

दही : परिवार में प्यार बढ़ता है। 

अक्षत : धन के प्राप्ति होती है 

शहद : विद्या में प्रबलता देता है। 

गेंने का रस : सभी आनंदो कि प्राप्ति होती है। 

गेहू  : संतान सुख के प्राप्ति होती है।  

घी : आरोग्यता प्रदान करता है। 

शक्कर  : तिव्र बुद्धि के लिए।  

तिल  : पापो का नाश करता है। 

जौ : सुख में वृद्धि होती है।  

सुगंधित तेल : समृद्धि व व्रद्धि मिलती है।  

गंगाजल चढ़ाने : भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

चमेली का फूल : वाहन सुख 

अलसी के फूल : भगवन विष्णु को अन्य प्रिय हो जाता है।  

धतूरे का फूल : पुत्र की प्राप्ति होती है जो कुल का नाम रोशन करता है।  

भगवन शिव को क्या चढ़ना वर्जित है ?

शिव भगवन को प्रसन करना जितना आसान है वहि कुछ वस्तुए चढ़ाने से वो रुष्ट भी हो सकते है।  जिसमे नाम कुछ इस प्रकार है।  

केतकी के फूल ,तुलसी माता के पत्ते ,नारियल का पानी ,हल्दी ,कुमकुम /सिन्दूर ,शंख से जल। 

डिस्क्लेमर : ये सभी जानकारी लोक मान्यताओं और ग्रंथो द्वारा एकत्रित की गए है ।

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